Godan book review Hindi: हिंदी गद्य साहित्य के इतिहास में मुंशी प्रेमचंद का योगदान उस सूर्य की तरह है जिसकी रोशनी से आज तक हिंदी लेखन का हर कोना दमक रहा है। आज के आधुनिक लेखकों के प्रेरणास्रोत हैं प्रेमचंद। कारण ये है कि उन्होंने समाज के जिस भी हिस्से को अपने कथानक का हिस्सा बनाया, ऐसा लगता था कि उसका जीवन्त अनुभव लेकर लिख रहे हों। प्रेमचंद ने अपने लेखन काल में कई कहानियां, नाटक, निबंध और उपन्यास लिखे जो आज भी प्रासंगिक और बार बार पढ़ने योग्य हैं। उनके द्वारा रचित उपन्यास “गोदान” ने उन्हें उपन्यास सम्राट की पदवी दिला दी।
आज की पुस्तक समीक्षा में हम प्रेमचंद के उपन्यास गोदान का निष्पक्ष विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे और बताएंगे कि क्यों गोदान हिंदी उपन्यास का सिरमौर है और एक विश्वस्तरीय रचना है। सच पूछा जाए तो गोदान उपन्यास के सर्वोत्कृष्ट रुप को प्रस्तुत करने वाली रचना है। प्रेमचंद ने गोदान में तत्कालीन सामाजिक परिवेश की विषमताओं व मानवीय संवेदनाओं की हर छोटी-बड़ी अभिव्यक्तियों का सूक्ष्म चित्रण प्रस्तुत किया है।

कथानक का मुख्य आकर्षण:
Godan book review Hindi: गोदान उपन्यास के कथानक का मुख्य उद्देश्य औपनिवेशिक शासन के समय भारतीय किसान की आजीवन संघर्षरत जीवन की विवशता को दर्शाना है। कहीं ना कहीं ग्रामीण जीवन के साथ उससे जुड़ी हुई शहरी जीवन की परिस्थितियों को भी समान रूप से दर्शाया गया है। उपन्यास में एक प्रसंग के माध्यम से ग्रामीण जीवन और नगरीय जीवन को कथानक में साथ साथ आगे बढ़ाया गया है। ये प्रसंग वहां से शुरू होता है जब गोबर राय साहब के यहां आयोजित रामलीला में मजदूर बनकर शहर जाता है जहां शहर के नामी गिरामी लोग रामलीला देखने पहुंचे हैं और यहीं से गोबर का शहरियों से सम्पर्क होता है और कथानक में ग्रामीण जीवन के साथ शहरी जीवन भी जुड़ जाता है।
यद्यपि कुछ आलोचक:
यद्यपि कुछ आलोचक ये मानते हैं कि जब गोदान ग्रामीण जीवन को लक्षित करने वाला उपन्यास है तो इसमें नगरीय कथानकों को जोड़ने का क्या औचित्य है? उनका मानना है कि ये स्थिति कथानक को थोड़ा उबाऊ बना देती है। इस प्रकार की आलोचना आसानी से गले नहीं उतरती क्योंकि प्रेमचंद गोदान में तत्कालीन भारतीय समाज की वास्तविक वस्तुस्थिति दिखाना चाहते थे जिसमें ग्रामीण जीवन केन्द्र में है। इसमें जमींदार को किसानों के शोषण के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार दिखाया गया है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से शहरी लोग भी इस शोषण के लिए उत्तरदायी हैं, इस बात को साबित करने के लिए ही शहरी जीवन के पहलुओं को दिखाना अपरिहार्य था।
एक प्रसंग में राय साहब खन्ना की मिल के शेयर खरीदने के बाद दावत देते हैं तथा अधिकारियों को उपहार में डालियां पहुंचाते हैं। ये सब चीजें गांव से आती हैं विशेष रूप से किसानो के पास से। इस प्रकार किसानों के मेहनत की कमाई शहरी लोग अपनी विलासिता में व्यय कर देते हैं। सच पूछिए तो ग्रामीण जीवन की विषमताओं के कारण के रूप में प्रेमचंद ने शहरी जीवन के पहलुओं को उकेरा है। गोदान के मूल में ग्रामीण जीवन की ही समस्याएं उजागर हैं। पूरे उपन्यास को इतने व्यवहारिक स्तर पर लिखा गया है कि पाठक वस्तुस्थिति समझते में जरा भी भ्रमित नहीं होता।
NOTE:- इस प्रकार ग्रामीण जीवन को मूल में रखकर लेखक ने तत्कालीन समाज के स्वरूप को बड़े सुनियोजित व पठनीय रुप में प्रस्तुत किया है।
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उपन्यास के पात्रों का चित्रण:
एक कुशल उपन्यासकार अपने कथानक में पात्रों को जबरन थोपता नज़र नहीं आता। ऐसा ही प्रेमचंद ने गोदान में किया है। सभी पात्रों की उपस्थिति कथा और प्रसंग के अनुसार स्वाभाविक रूप से है। उपन्यास में पात्रों के आपसी संवाद प्रसंग से मेल खाते हुए पात्रों को जीते हैं। ऐसा कहीं भी नहीं लगता कि लेखक ने अनावश्यक उन्हें जोड़ा है और कुशल रचनाकार की यही विशेषता उसे दूसरों से अलग करती है।
गांव व नगर के पात्र अपनी अपनी भूमिका का प्रतिनिधित्व करने में एकदम सफल रहे हैं। इस उपन्यास का नायक होरी है। कहना ना होगा कि प्रेमचंद ने अपने नायक के साथ पूरा न्याय किया है। पूरे उपन्यास का सूत्र होरी से जुड़ा हुआ है। यहां तक कि उपन्यास का समापन भी होरी के जीवन के समापन के साथ ही होता है। होरी एक ऐसा पात्र है जो सिर से पैर तक ऋण में डूबा है और जीवन पर्यन्त उसकी यही स्थिति रहती है। जीवन भर कठिनाइयों और विवशताओं से घिरा होरी एकदम यथार्थ को जीता है और वैसा ही आचरण करता है। साथ ही नैतिकता व परंपराओं बंधा भी है। 30 रूपए के कर्ज के लिए 300 रूपए ब्याज देने को तैयार रहता है क्योंकि उसका मानना है कि एक ब्राह्मण का धन लेकर उसका उद्धार नहीं हो सकता।
वहीं गोबर जब शहर आता है तो वहां के रंग ढंग का उसपर असर होता है। शहर से गांव आने पर उसका व्यवहार बिल्कुल बदल जाता है। शहरी लोगों का चरित्र चित्रण पात्र के अनुरूप एकदम सटीक दिखता है। जमींदार के रूप में राय साहब की भूमिका प्रभावशाली है। पात्रों के चरित्र चित्रण में गोदान पूरी तरह से सफल उपन्यास है। गोदान में प्रेमचंद ने अपने पात्रों के साथ इतना न्याय किया है कि इसी कारण पूरे उपन्यास में प्रारंभ से अंत तक रोचकता बनी रहती है।
संवाद शैली:
इस बात में तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है कि पात्रों के अनुरूप संवाद रचना में प्रेमचंद को महारत हासिल है। उदाहरण के लिए डॉ. मेहता दार्शनिक प्रोफेसर होने के नाते उनके संवाद दीर्घ और संजीदा हैं। जैसे पात्र हैं, वैसी भाषा का प्रयोग किया गया है। प्रेमचंद की गवंई भाषा में भी गजब की कलात्मकता और आकर्षण है। होरी का अपनी पत्नी धनिया से वार्तालाप इतना सहज व स्वाभाविक है कि बार बार पढ़ने का मन करता है। प्रेमचंद ने अपने हर पात्र का मनोभाव उसके संवाद में उकेर दिया है।
देश-काल के अनुरूप सामाजिक चित्रण:
प्रेमचंद की ज्यादातर रचनाएं सामाजिक व लोकजीवन का प्रतिनिधित्व करने वाली रही हैं। उनकी कहानियों में जमींदारी प्रथा के समय का भारत झांकता है। अतः स्वाभाविक रूप से ग्रामीण जीवन उनके लेखन में रचा बसा है। इस दिग्गज कलमकार ने अपने लेखन में ग्रामीण परिवेश को इतनी सुन्दरता से उकेरा है कि उनकी कहानी या उपन्यास काल्पनिक नहीं यथार्थ लगते हैं। गोदान पढ़ते समय पाठक सहज रूप से उसी में समा जाता है और ऐसा लगता है कि गोदान के पात्र जैसे जमींदार, महाजन, निरंकुश सरकारी अफसर तथा विलासिता प्रवृत्त शहरी लोगों के परिवेश और वस्तुस्थिति बहुत सहज तरीके से आपके आस पास ही हों। प्रेमचंद ने देश-काल और वातावरण को इतने नियोजित तरीके से आपस में पिरोया है कि कहीं भी कोई कड़ी प्रसंग से टूटती नज़र नहीं आती।
सफल मानवीय चित्रण:
Godan book review Hindi: प्रेमचंद गोदान में जो दिखाना चाहते थे, उसमें पूरी तरह से सफल रहे हैं। उन्होंने ग्रामीण जीवन के सबसे निचले पायदान पर संघर्ष करते हुए किसान की पीड़ा को ढूंढ ढूंढ कर उजागर किया गया है। अपनी परंपराओं से बंधे हुए किसान की विवशता ऐसी है कि वह राजनीति की शिकार होकर हर जगह मात खाती है और ये विवशता उसे मृत्यु के कगार तक ले जाती है। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि प्रेमचंद ने गोदान में उस समय के आंदोलन का कोई जिक्र नहीं किया है बल्कि उपन्यास का पूरा लेखन ग्रामीण जीवन की कष्टकारी स्थितियों व समस्यायों पर केन्द्रित रहा।
बोली और भाषा विन्यास:
इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि प्रेमचंद भाषा और शैली के महानायक हैं। प्रेमचंद के गोदान में पात्र अपने देश काल और स्वभाव के अनुसार बोली भाषा बोलते हैं। जैसे यदि मुस्लिम पात्र है तो वह सीधी सरल उर्दू बोलता है और हिन्दू पात्र एकदम बोलचाल वाली हिंदी। लेखक ने भाषा की शुद्धता के चक्कर में कहीं भी स्वाभाविकता को नहीं खोया है। मसलन राय साहब के घर जाते समय जब धनिया होरी को टोकती है तो वह उससे कहता है कि यह सब मिलने जुलने का परसाद है कि अब तक जान बची हुई है।
भाषा की विविधता देखिए, एक प्रसंग में भावपूर्ण संयोजन इस प्रकार है, ‘’झुनिया किसी वियोगी पक्षी की भांति अपने छोटे से घोंसले में एकान्त जीवन काट रही थी। वहां नर का मत्त आग्रह न था, न वह उदीप्त लालसा, न शावकों की मीठी आवाजें, मगर बहेलिए का जाल और छल भी तो वहां न था।” अब भाषा की गंभीरता देखिए, “वैवाहिक जीवन के प्रभाव में लालसा अपनी गुलाबी मादकता के साथ उदय होती है और ह्रदय के सारे आकाश को अपने माधुर्य की सुनहरी किरणों से रंजित कर देती है। फिर मध्यान्ह का प्रखर ताप आता है, क्षण-क्षण पर बबूले उठते हैं और धरती कांपने लगती है। लालसा का सुनहला आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रूप में सामने आ खड़ी होती है।”
एक ही उपन्यास में भाषा की विविधता का इतना सुन्दर संयोजन प्रेमचंद जैसे महान रचनाकार की प्रवीणता दर्शाता है। गोदान में पात्रों के अनुसार भाषा में व्यवहारिकता और सहजता है। उपन्यास में न ही कहीं दुरुहता है और न ही उबाऊपन। पूरे उपन्यास में आपको कहीं वर्णनात्मक , कहीं संवादात्मक तो कहीं आत्म विश्लेषणात्मक शैली देखने को मिलेगी।
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निष्कर्ष:
Godan book review Hindi: गोदान उपन्यास प्रेमचंद की अमर साहित्यिक रचना है। हिंदी साहित्य में गोदान ऐसा मील का पत्थर है जो अपने आप में उपन्यास का मानदण्ड है। इस उपन्यास ने प्रेमचंद को यथार्थवादी और स्वत:स्फूर्त भाषा के महानायक के रूप में प्रतिष्ठित किया है तथा उनका योगदान हिंदी गद्य साहित्य में अजर और अमर रहेगा।