Gunahon Ka Devta book review Hindi: हिंदी गद्य साहित्य में धर्मवीर भारती का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। मध्यवर्गीय समाज की भावनाओं व संवेदनाओं को उकेरने वाले कुशल शिल्पी के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल माने जाते हैं धर्मवीर भारती। लेखक को 1950 में लिखे गए अपने उपन्यास “गुनाहों का देवता” के लिए विशेष प्रसिद्धि मिली क्योंकि यह किताब अपने समय में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुस्तकों की सबसे ऊपर की पंक्ति में अपना स्थान रखती है।
गुनाहों का देवता एक मध्यवर्गीय भारतीय परिवार की कहानी है। ये कहानी मुख्य रूप से चार पात्रों पर केन्द्रित है, सुधा, चन्दर, पम्मी व बिनती। कथानक में परवाह करने वाला प्रेम सामाजिक लोकराज तले दब जाता है लेकिन उम्र भर अपने प्यार को न पा सकने की कसक विविध रूपों में अभिव्यक्त होती रहती है। आज की पुस्तक समीक्षा में हम आपके समक्ष धर्मवीर भारती जी के इस अति चर्चित उपन्यास की विश्लेषणात्मक समीक्षा प्रस्तुत करेंगे।

सम-सामयिक कथानक:
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सम-सामयिक कथानक:
कहानी का त्रिकोणात्मक पहलू:
कहानी का चौथा पहलू:
भाषा व शैली विन्यास:
निष्कर्ष:
यदि गुनाहों के देवता उपन्यास के कथानक की बात की जाए तो भारती जी ने जिस विषय पर लिखा है वो मध्यमवर्गीय परिवार के अमूमन हर युवा के दिल को छू कर गुजरता है। संभव है कि आज परिस्थितियां बहुत कुछ बदल गई हों पर वो प्रसंग अब भी आस पास महसूस किए जा सकते हैं। तभी तो ये उपन्यास आज भी साहित्य प्रेमी युवाओं की पसंद बना हुआ है। पूरे कथानक में उपन्यास का नायक चन्दर अपने प्रेम को निभाने, परवाह करने और अंततः उत्सर्ग करने तक का सफर तय करता है।
नायिका सुधा भी कुछ ऐसी ही प्रेमिका है जो हर तरह से चन्दर की अनुगामिनी है, इस हद तक कि उसकी सहमति को शिरोधार्य कर वह दूसरे से विवाह कर लेती है। यहां ये बात ध्यान देने योग्य है साठ के दशक की ये प्रेम कहानी आज के प्रेम से कुछ मायनों में अलग है…वो इसलिए कि यहां प्रेमी देवता है और प्रेमिका उसकी भक्त। सच पूछिए तो ये एक असाधारण प्रेम कहानी है।
असाधारण प्रेम कहानी
चन्दर सुधा के प्रोफेसर पिता का स्टूडेंट है जो हर तरह से अपनी छत्रछाया में उसे प्रमोट करते हैं और उस पर भरोसा भी उतना ही करते हैं। घर के सदस्य की तरह उसका घर में आना जाना था। इसी दौरान प्रोफेसर की अति चंचला बेटी सुधा और चन्दर कब एक दूसरे के प्रेम में पड़ गए, ये उन्हें ख़ुद पता नहीं चला। उनके प्रेम की पवित्रता देखिए कि जब प्रोफेसर अपनी बेटी का विवाह कहीं और तय कर देते हैं तो उसको राजी करने की जिम्मेदारी चन्दर को सौंप देते हैं।
प्रोफेसर के एहसानों तले दबा चन्दर अपने प्रेम का उत्सर्ग कुछ इस तरह करता है कि सुधा को पिता द्वारा तय की गई शादी करने के लिए रजामंद कर लेता है और सुधा ने भी अपने देवता की आज्ञा शिरोधार्य कर विवाह करना स्वीकार कर लिया। अब इस प्रेमाहुति का परिणाम ये रहा बाकी का पूरा जीवन दोनों प्रेमियों ने तिल तिल कर कष्ट देने वाले नासूर की तरह गुजारी।
कहानी का त्रिकोणात्मक पहलू:
इस कहानी में तीसरे पक्ष के रूप में पम्मी नामक महत्वपूर्ण किरदार की भूमिका है। पम्मी एक तलाकशुदा एंग्लो-इंडियन महिला है जिसका अपने पति से अलग होने के बाद चन्दर की ओर खिंचाव बढ़ता है। यद्यपि उसे चन्दर और सुधा के प्रेम प्रसंग का पता है। वो चन्दर के समक्ष कई बार ऐसी बातों का विचार के तौर पर खुलासा करती है जो अमूमन युवा प्रेम के कड़वे आनुभविक सच हैं। चन्दर और पम्मी के अंतरंग संबंधों को उपन्यास में दिखाया अवश्य गया है पर उसमें फूहड़ता नहीं दिखती। इसी प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए लेखक एक स्थान पर लिखते हैं –
“औरत अपने प्रति आने वाले प्यार और आकर्षण को समझने में एक बार चाहे भूल कर ले, लेकिन वह अपने प्रति आने वाली उदासी और उपेक्षा को पहचानने में कभी भूल नहीं करती।” इसी तरह एक स्थान पर लेखक कहते हैं, शरीर की प्यास उतनी ही पवित्र और स्वाभाविक है जितनी आत्मा की पूजा। आत्मा की पूजा और शरीर की प्यास दोनों अभिन्न हैं।
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कहानी का चौथा पहलू:
उपन्यास के अंतिम पड़ाव पर चन्दर की जिंदगी में सुधा व पम्मी के बाद बिनती का आगमन होता है जो अंततः उसकी जीवन संगिनी बनती है। एक सहज स्त्री के रूप में उसे पता है कि सुधा व पम्मी के प्रेम से थका हारा चन्दर उसके हिस्से में आया है और वह उसे एक नव जीवन देने के लिए स्वीकार करती है। उपन्यास की अंतिम पंक्तियां इसी पहलू को बयां करती हैं –
“सितारे टूट चुके थे, तूफ़ान खत्म हो चुका था। नाव किनारे पर आकर लग गई थी, मल्लाह को चुपचाप रूपए देकर बिनती का हाथ थामकर चन्दर ठोस धरती पर उतर पड़ा …”
भाषा व शैली विन्यास:
साठ के दशक में लिखे गए इस उपन्यास का प्रारुप अंग्रेजों के समय का भारतीय परिवेश है। भाषा शैली में इलाबादी खड़ी बोली का बढ़िया प्रयोग है। लेखक ने प्रसंगानुसार साहित्यिक भाषा का सुंदर और भावनाओं को छूने वाला बेहतरीन संयोजन प्रस्तुत किया है। पढ़ें लिखे लोगों की भाषा के साथ ही आपसी संवाद में प्रेम की परिभाषा भी व्यक्त होती है। प्रसंगानुसार संवाद इतने दिलचस्प और आकर्षित करने वाले हैं कि कुछेक को दोबारा पढ़ने का मन करता है।
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निष्कर्ष:
Gunahon Ka Devta book review Hindi: एक युवा के लिहाज से देखिए तो यह एक दुखान्त प्रेम कहानी है। एक ऐसी कहानी जो नायक के अपने प्रेम के उत्सर्ग के कारण उसे गुनाहों का देवता बना देती है। इस भटकाव में नायक आजीवन अतृप्त और अशांत रहता है और जाने अंजाने अपने प्रेम की प्रतिपूर्ति के लिए उससे जो गुनाह होते हैं उससे वो चाहकर भी उबर नहीं पाता।
निष्पक्ष रूप से कहा जाए तो लेखक अपने उपन्यास में जो दिखाना चाहते थे उसमें वो सफ़ल रहे हैं। इसी कारण गुनाहों का देवता आज भी युवाओं में बहुत चाव से पढ़ी जाने वाली पठनीय प्राथमिकता है।