
Rise of Digital Payments: दुनिया भर में डिजिटल भुगतान (Online Payment) का चलन अब आम बात हो गई है। समय और परिस्थितियों की मांग ने मानव जीवन में विकास के नए आयाम दिए हैं। आज यदि भारतीय संदर्भ में इस विषय पर बात करें तो भारत में ई-कॉमर्स मार्केट 31% की CAGR से बढ़ते हुए 2026 तक $200 बिलियन तक पहुंचने की संभावना है। कहना न होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में डिजिटल भुगतान की भूमिका व सफलता ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। आज़ देश एक बेहतरीन कैशलेस प्रणाली की ओर निरंतर अग्रसर है। UPI को अपनाकर जनसाधारण ने सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर देश को मजबूती दी है। लोगों को नकदी और चिल्लर जैसी समस्याओं से मुक्ति मिली है। साथ ही कहीं न कहीं लोगों की जेब का अतिरिक्त खर्च भी कम हुआ है।
THE BLOG INCLUDE
उत्तरोत्तर बढ़ती संभावनाएं:
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) का गठन:
आज देश में लगभग 10 तरह के डिजिटल भुगतान मौजूद हैं
Banking Card:
असंरक्षित पूरक सेवा डेटा (USSD):
आधार समर्थित भुगतान प्रणाली (AEPS):
एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI):
मोबाइल वॉलेट:
बैंक प्री-पेड कार्ड:
बिक्री केंद्र (POS):
इंटरनेट बैंकिंग:
मोबाइल बैंकिंग:
माइक्रो ATM:
निष्कर्ष:
आज के आलेख में आपको भारतीय अर्थव्यवस्था में डिजिटल भुगतान की बढ़ती संभावनाएं, उपयोगिता व प्रभाव से संबंधित विस्तृत जानकारी से अवगत कराएंगे।
उत्तरोत्तर बढ़ती संभावनाएं:
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर 2021 तक भारत में अनुमानतः 1.18 बिलियन मोबाइल कनेक्शन, 700 मिलियन इंटरनेट यूजर्स तथा 600 के आसपास एंड्रॉयड फोन थे, यह आंकड़ा निरंतर बढ़ रहा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 2020 में रीयल – टाइम भुगतान लेन-देन में भारत का दुनिया में प्रथम स्थान रहा।
सबसे पहले 1996 में ICICI ने अपनी शाखाओं में इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग का प्रयोग करते हुए भारत में Online Banking सेवाओं का शुभारंभ किया। उसके बाद क्रमशः 1999 में HDFC, IndusInd व Citi बैंकों ने Online Banking सेवाएं प्रारंभ कईं। इस तरह देश में डिजिटल लेन देन की शुरुआत हुई और ज्यादातर बैंकों ने अपने यूजर्स को डिजिटल भुगतान की सेवाएं देना शुरू कर दिया।
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) का गठन:
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) व भारतीय बैंक संघ (IBA) ने मिलकर संयुक्त रूप से देश में एक सशक्त भुगतान व निपटान प्रणाली के रूप में 2008 में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) का गठन किया। इसके बाद NPCI ने BBPS , Bhim व चेक ट्रांजैक्शन जैसी कई सुविधाएं लांच कीं।
आज देश में लगभग 10 तरह के डिजिटल भुगतान मौजूद हैं जिनकी जानकारी नीचे दी जा रही है –

Banking Card:
Rise of Digital Payments: सर्वप्रथम 1980 में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकिंग कार्य को क्रेडिट कार्ड के रूप में लांच किया। उसके बाद क्रमशः1988 में मास्टर कार्ड और 1993 तक विभिन्न PCU बैंकों ने क्रेडिट कार्ड की शुरुआत की।
असंरक्षित पूरक सेवा डेटा (USSD):
ये भुगतान प्रणाली 2016 में शुरू हुई। इस बैंकिंग सुविधा के यूजर्स इंटरनेट कनेक्शन के बगैर मोबाइल बैंकिंग का लाभ उठा सकते हैं।
आधार समर्थित भुगतान प्रणाली (AEPS):
इस सुविधा के तहत यूजर्स को संबंधित बैंक आधार सत्यापन के द्वारा किसी भी बैंक के व्यवसाय संवाददाता के जरिए बिक्री केंद्र (POS) पर Online लेन देन की सहमति देता है।
एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI):
इसे सर्वाधिक प्रचलित सहज और सुरक्षित डिजिटल भुगतान माध्यम माना जाता है। 2016 में NPCI द्वारा जारी की गई ये सेवा पीयर -टू-पीयर ट्रांजैक्शन की सुविधा उपलब्ध कराती है।
मोबाइल वॉलेट:
ये एक वर्चुअल सुविधा है। इसके द्वारा पेमेंट कार्ड की जानकारी मोबाइल पर कलेक्ट की जा सकती है।
बैंक प्री-पेड कार्ड:
इस कार्ड का मोटो है “अभी भुगतान करें, बाद में उपयोग करें”। इसके जरिए यूजर्स को कार्ड में उपलब्ध अमाउंट से खरीदारी करने की सुविधा होती है।
बिक्री केंद्र (POS):
ये एक तकनीकी सुविधा है जो किसी भी व्यवसायिक प्रतिष्ठान में कस्टमर को कैशलेस सिचुएशन में वस्तुओं या सेवाओं के लेन देन के लिए प्रदान की जाती है।
इंटरनेट बैंकिंग:
इंटरनेट बैंकिंग संबंधित बैंक के ग्राहकों को पोर्टल के माध्यम से लेन देन की सुविधा प्रदान करती है।
मोबाइल बैंकिंग:
इस सुविधा के तहत बैंक व वित्तीय संस्थान मोबाइल डिवाइस के जरिए लेन देन की सुविधा उपलब्ध कराते हैं।
माइक्रो ATM:
इस पोर्टेबल डिवाइस के द्वारा कार्ड स्वाइप मशीनों जरिए लेन देन किया जाता है।
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निष्कर्ष:
जैसा कि उपरोक्त Rise of Digital Payments: विश्लेषण से स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को डिजिटल लेन देन के माध्यम में समर्थ और सशक्त बनाने के उद्देश्य से सरकार ने 2015 में पूरे देश में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की जोरदार शुरूआत की जिसके तहत सरकार ने प्रत्येक नागरिक को मोबाइल फोन व बैंक खाते उपलब्ध कराने का अभियान चलाया जिसका उद्देश्य ऑनलाइन माध्यम से सभी को यथासमय लेन देन की सुविधा सुनिश्चित कराना है। सरकार के इस अथक प्रयास का परिणाम है कि पूरे देश में कैशलैस व्यवस्था का विस्तार तेजी से बढ़ रहा है और जन साधारण में डिजिटल संसाधनों की उपयोगिता सिद्ध हो रही है। आज निरंतर विकास की ओर बढ़ते भारत की ये मिसाल है कि बड़े बड़े मॉल से लेकर फल व सब्जी बेचने वाले हॉकर्स भी स्कैनर के जरिए डिजिटल लेन देन का प्रयोग कर रहे हैं।